श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) - एक परिचय | ||
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श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) की स्थापना 22 अप्रैल 1993 को हुई। श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) की स्थापना कोई पूर्व नियोजित या योजना पूर्वक किया हुआ प्रयास नहीं था। श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के संस्थापक कुलदीप कुमार गुप्ता को 21 अप्रैल 1993 की मध्य रात्रि में भगवान श्री कल्कि की अद्भुत प्रेरणा हुई। उनके हाथ से अनायास ही ‘श्री कल्कि सेना’ शब्द लिख गये। तब उन्होंने सोचा कि इस नाम से तो एक संगठन होना चाहिए। उन्होंने विचार किया कि सगठन का अध्यक्ष कौन होगा ? तब उन्होंने मन ही मन अपने प्रश्न का उत्तर दिया कि इसके अध्यक्ष तो भगवान श्री कल्कि ही हो सकते हैं। राजा भी भगवान श्री कल्कि ही हैं और इस सेना के सेनापाति भी भगवान स्वयं होंगे। किन्तु कुलदीप कुमार गुप्ता का मानना था क्योंकि भगवान श्री कल्कि का अवतार अभी नहीं हुआ है तब भगवान श्री कल्कि की प्रेरणा को आदेश और निर्देश मानकर उन्होंने अपने आप को इसका अध्यक्ष एवं संयोजक लिखा। इस संगठन का नाम और पद आदि एक कागज पर स्केच पेन से लिखकर वह सुबह होने का इंतजार करने लगे। सुबह होते ही वह प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर जिसे लोग रानी वाला मन्दिर के नाम से भी जानते हैं, पहुँचे। इससे पहले वह दो बार ही इस मन्दिर में गये थे। प्रथम बार वह इस मन्दिर में तब गये थे जब प्रख्यात संत रामचन्द्र डोंगरे जी महाराज इस मन्दिर में दर्शन करने आये थे। तब हजारों की संख्या में लोग इस मन्दिर में आये थे। तब वे मन्दिर में विराजित श्री विग्रह के दर्शन नहीं कर पाये थे। दूसरी बार वह इस मन्दिर में अपने मित्र अनुज गुप्ता के साथ आये थे। तब उन्होंने भगवान की छवि के प्रथम बार दर्शन किये थे। भगवान की अद्भुत मूर्ति को देखते ही रह गये और उन्होंने अनुभव किया कि भगवान की यह मूरत बहुत तेजवान और अनौखी है। और तीसरी बार वह 22 अप्रैल 1993 को मन्दिर पहुँचे। मन्दिर में उन्होंने सर्वप्रथम पं0 महेश प्रसाद शर्मा जी के चरण स्पर्श किय और भगवान के दर्शन कर अपने रात वाले विचार वाला कागज उनके समक्ष रख दिया। पण्डित जी ने पूछा यह क्या है ? तब कुलदीप कुमार गुप्ता ने कहा कि पण्डित जी आप इसे स्वयं पढ़ लीजिए। पण्डित जी ने उस कागज को पढ़ा और तुरन्त बोले कि भगवान को किसी सेना की जरूरत नहीं है, वह स्वयं ही बहुत हैं। तब कुलदीप कुमार ने कहा कि पण्डित जी भगवान को तो अवतार लेने की भी जरूरत नहीं है वह तो बैठे-बैठे ही सब कुछ कर सकते हैं और भगवान राम ने तो वानर और भालुओं की सेना बनाई थी। तब पण्डित जी इस तर्क से प्रभावित हुए और बोले अगर तुम सेना ही बनाना चाहते हो तो इसका नाम ‘निष्कलंक दल’ रखो। तब कुलदीप कुमार गुप्ता ने कहा कि जब हम निष्कलंक नहीं हो सकते तो यह दल निष्कलंक दल कैसे हो सकता है? उक्त तर्क पर पण्डित महेश प्रसाद शर्मा जी ने कहा कि श्री कल्कि का एक नाम ‘निष्कलंक’ भगवान भी है और निष्कलंक दल का इतिहास भी मिलता है। तब कुलदीप कुमार गुप्ता ने कहा कि ठीक है इसका नाम श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) होगा। पं0 महेश प्रसाद शर्मा ने तो इस पर मुहर लगा दी लकिन कुलदीप कुमार गुप्ता के सामने प्रश्न था कि कैसे इसे साकार करें। संयोग से मन्दिर की सीढ़यों से उतरते ही उनकी दृष्टि सुभाष चन्द्र त्यागी सुपुत्र श्री विजय प्रकाश त्यागी पर पड़ी। कुलदीप कुमार ने उनके निकट जाकर उनसे जय श्री कल्कि का संबोधन कहा और उन्हें अपने मंतव्य से अवगत कराया। सुभाष त्यागी ने सहर्ष इस विचार का स्वागत किया और इसको साकार करने में सहयोग की पुष्टि की। इस तरह एक और एक ग्यारह हो गये। इसके बाद अत्यन्त त्यागी भी इस मुहिम मे जुड़ गये और ललित पाण्डेय, महावीर मोंगिया, राजीव लोचन गर्ग, पुनीत गुप्ता, वीरेन्द्र कुमार शर्मा, नरेन्द्र स्वामी, तरूण अग्रवाल, वीरेन्द्र आर्य, सन्तोष देवल, अनुज गुप्ता, पूरन पाल सिंह कश्यप आदि इसके प्रारम्भिक सदस्य बने और इस प्रकार भगवान श्री कल्कि की प्रेरणा श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के रूप में स्थापित होकर साकार हो गई।
श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के संस्थापक/प्रारम्भिक सदस्यों ने एक संविधान तैयार किया, जिसमें उसका उद्देश्य वाक्य भी निश्चित किया गया -
‘धर्म रक्षार्थ - राष्ट्र हितार्थ’
श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल)
जब इस संगठन की स्थापना हुई थी तब इसके संस्थापक कुलदीप कुमार गुप्ता भगवान के श्री कल्कि अवतार के विषय में ज्यादा नहीं जानते थे। लेकिन भगवान श्री कल्कि के नाम के साथ उनका नाम दूसरी बार जुड़ा था। 1987 में जब वह एमजी0एम0 डिग्री कालेज सम्भल में बी0ए0 के छात्र थे, उन्होंने गणतंत्र दिवस पर एक भाषण दिया था, उस भाषण से प्रभावित होकर सम्भल के तत्कालीन प्रेस क्लब अध्यक्ष और श्री कल्कि वाणी साप्ताहिक समाचार पत्र के सम्पादक शिव कुमार अग्रवाल एडवोकेट ने उन्हें अपने अखबार का सह सम्पादक बना लिया। इस तरह पूर्व जन्मों के संचित पुण्य थे जो भगवान श्री कल्कि कुलदीप कुमार गुप्ता से अपना कार्य करवाना चाहते थे। श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) की स्थापना के साथ ही कुलदीप कुमार गुप्ता का पं0 महेश प्रसाद शर्मा और मणिकर्णिका तीर्थ के पं0 रमेश प्रसाद मिश्रा के साथ बहुत समय बीतने लगा और साथ ही प0 महेन्द्र प्रसाद शर्मा सुपत्र पं0 महेश प्रसाद शर्मा के साथ भी धार्मिक और भगवान श्री कल्कि के सम्बन्ध में खूब चर्चा होती थी। इसके साथ भगवान श्री कल्कि का जो भी साहित्य उपलब्ध होता गया उसका भी कुलदीप कुमार गुप्ता ने अध्ययन किया। सभी कल्कि मण्डलों के आदि गुरू गुरूवर बाल मुकन्द जी और गुरूवर पं0 लक्ष्मी नारायण जी की जीवनी और कार्यों के बारे में जानकर कुलदीप कुमार गुप्ता की उनमें अपार श्रद्धा हो गई और भगवान श्री कल्कि में विश्वास दृढ़ होता गया। इसके साथ ही गुरूजनों के और आदरणीय मनोकान्त तिवारी जी के भजनों ने तो मानो इस तरह मस्तिष्क में अपना स्थान बना लिया जैसे भक्ति के सागर में ज्ञान और विश्वास की नाव उपलब्ध हो गई हो।
लेकिन कुलदीप कुमार गुप्ता को कोई व्यक्तिगत भक्ति या पूजा नहीं करनी थी, उन्हें तो एक ऐसी शक्ति खड़ी करनी थी जो धर्म और राष्ट्र की रक्षा और हित साधने में सक्षम हो। साथ ही उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना था कि यह शक्ति एक दल के रूप में बेदाग रहे। इस कारण कुलदीप कुमार गुप्ता ने अपनी सभी तरह की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को तिलांजलि दे दी और अन्य किसी भी संगठन का सदस्य बनना स्वीकार नहीं किया।
आरम्भ में श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) को अन्य दलों और संगठनों ने गंभीरता से नहीं लिया, किन्तु प्रारम्भ में श्री कल्कि विष्णु मन्दिर और श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव से श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) की निकटता और भूमिका बड़ती चली गई। कलियुग के प्रभाव से श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के प्रारम्भिक सदस्य निष्क्रिय होते गये, किन्तु एक संस्थापक और संयोजक के रूप में कुलदीप कुमार गुप्ता ने हार नहीं मानी और वह निरन्तर युवा प्रतिभाओं को श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) से जोड़ते रहे। अपनी स्थापना के दूसरे वर्ष में ही श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) को अविवेक पूर्ण दुष्प्रचार का सामना करना पड़ा जिसके पीछे कुछ स्वार्थी तत्व थे। किन्तु सारी विपरीत परिस्थितियाँ भी दृढ़ संकल्प के आगे नतमस्तक हो गईं और श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रही।
कुलदीप कुमार गुप्ता ने समय-समय पर संगठन को कुछ नारे (स्लोगन) भी प्रदान किये जो सगठन की पहचान बने। जैसे -
1- श्री कल्कि सेना का सन्देश, पावन मानस सुखमय देश।
2- श्री कल्कि सेना की यह रीत, प्रभु की भक्ति - राष्ट्र से प्रीत।
3- श्री कल्कि सेना का विश्वास, धर्म ध्वजा चढ़े आकाश।
श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) अन्य संस्थाओं और संगठनों से अनेक प्रकार भिन्नता रखता है। श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) का सदस्य होने के लिए धन की कोई भूमिका कभी प्रमुख नहीं रही। संगठन में बुद्धिजीवी जैसे- डाॅक्टर्स, वकील, प्रवक्ता, अध्यापक आदि जुड़े तो व्यापारी, नौकरीपेशा, किसान, मजदूर और छात्र भी जुड़े।
कुलदीप कुमार गुप्ता का मानना था कि भगवान श्री कल्कि के अवतार के समय के विषय में सभी भक्तों और विद्वानों के बीच मतभिन्नता और मतभेद था। अतः श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) अपनी स्थापना द्वारा एक ऐसा प्लेटफार्म बन सकता था, जहाँ धर्म में आस्था, ईश्वर में विश्वास और राष्ट्र से प्रेम करने वाले युवा एक शक्ति बनकर खड़े हो सकते थे। जहाँ सदस्यों के बीच एक पारिवारिक माहौल हो और समाज जिनसे उम्मीद भरी दृष्टि से देख सकता हो। भगवान श्री कल्कि की कृपा से कुलदीप कुमार गुप्ता की यह सोच भी साकार हुई। सभी सक्रिय कल्कि सैनिकों के बीच एक अच्छा पारिवारिक सम्बन्ध बनता चला गया।
श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) ने अपने संस्थापक कुलदीप कुमार गुप्ता की सोच के अनुरूप यह निश्चय किया कि संगठन की जड़े पहले कल्कि नगरी सम्भल में मजबूती से जमानी हैं, तत्पश्चात् संगठन का विस्तार किया जायेगा। किन्तु अनेक कारणों से सदस्य निष्क्रिय होते गये और एक स्थायित्व और मजबूती आने में अधिक समय लगा। लेकिन इस अवधि में संगठन अपनी धार्मिक, सामाजिक और राजनीति को प्रभावित करने वाली भूमिका का निर्वाह भी करता गया। जैसे प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर के व्यवस्थागत कार्य हों, चाहे श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव में सहयोग या आयोजन का कार्य हो। यह कार्य मणिकर्णिका तीर्थ से लेकर वंश गोपाल तीर्थ तक विस्तार पाते गये और कभी शिव बारात के आयोजन और कभी भव्य रथ के निर्माण के रूप में प्रकट हुये। सामाजिक और राजनीतिक विचारों को भी श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) समय-समय पर व्यक्त करती रही, लेकिन अपनी अभिव्यक्ति को उसने विशिष्ट और प्रभावशाली बनाये रखा और संगठन के संविधान के अनुरूप अपनी सीमा और मर्यादा बनाए रखी।
कुलदीप कुमार गुप्ता का मानना है कि आज के समय में कलि के प्रभाव से बुराई और उसके समर्थक चारों ओर व्याप्त हैं। अच्छाई और सच्चाई का पालन करने वाले बहुत कम संख्या में हैं। अतः आज सत्य की नहीं असत्य की विजय हो रही है, किन्तु भगवान श्री कल्कि ने एक ऐसा अवसर हमें प्रदान किया है कि हम अच्छे लोगों को एकजुट कर बुराई से लड़ने और उसमें विजय प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। क्योंकि कहा भी गया है कि -
‘संघे शक्ति कलियुगे’
जब हम एक अभियान या युद्ध समय के राजा के विरूद्ध शुरू करते हैं तो हमें कुछ नियमों और सिद्धान्तों का पालन करना होता है। ऐसा करने से हमें भी बल मिलता है और हमारे संकल्प भी पूरे होते हैं। भगवान श्री कल्कि ने गुरूवर बाल मुकुन्द जी को अपने स्वप्न अनुभव में कहा था कि ‘‘सवा लाख शरीरों में मेरा तेज व्याप्त होगा और एक ही वाणी बोलेगा’’ और 1993 में ही कुलदीप कुमार गुप्ता ने यह निश्चित कर लिया कि श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के सवा लाख सदस्य ही बनाने हैं और भगवान की भक्ति और राष्ट्र की शक्ति के तेज से उनको आलौकित करना है।